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मिथुन से शाहरुख

बचपन में फिल्में देखना कब से शुरू किया ये तो याद नहीं, बस याद हैं  कुछ फिल्में और कुछ अभिनेताओं के नाम जो उस वक़्त मिडिल क्लास परिवारों के हम जैसे बच्चों में काफी पसंद किए जाते थे। मिथुन चक्रवर्ती, धर्मेंद्र, सन्नी देओल और थोड़ा बहुत अजय देवगन की फ़िल्मे हमारी मेन्यू में पाए जाते थे। हमारे जैसे बच्चों ने इनकी सारी फिल्में घोल के पी ली थीं। मिथुन की चांडाल, चीता, शेरा... धर्मेंद्र की शोले, लोहा.....तो अजय देवगन की गैर, दिलवाले, दिलजले..... इन फिल्मों की लिस्ट काफी लंबी है और अगर आप ध्यान से देखो तो इन सारी फिल्मों में हीरो को मुख्य रूप से एक ही काम करना होता था .............. बदला लेना। वो हमारा धोनी होता था सो वो हमें कभी निराश भी नहीं करता था, कभी नहीं। फ़िल्म ख़त्म होने तक वो अपने पूरे परिवार को गवां कर भी विलेन से बदला ले ही लेता था। और हम ख़ुश। मानो हमने ही बदला लिया हो! ज़ोया अख़्तर ने एक इंटरव्यू में कहा था कि भारत के लोग फिल्मों में वही देखना चाहते हैं जिनसे वो अपनी ज़िन्दगी में मोहताज रहते हैं। इसलिए जब थोड़ा बड़ा हुआ ( उम्र से), पता नहीं क्यूं शाहरुख ख़ान पसंद आने लगा

लाल इश्क़!

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"तुम खून दिखा पानी कर दे रहे हो मुझे। Don't blackmail me."  दो वाक्य का ये जवाब अभी - अभी ट्रिंग करके लोकेश के  WHATSAPP INBOX  में पहुंच चुका था। मोबाईल नंबर किसका था वो तो पता नहीं पर उसमें आनेवाला वो जवाब किसका था, वो मालूम था उसे। मोबाईल फोन अभी भी उसके जिगरी दोस्त रवि के हाथों में था जिसने कल शाम परेशान होकर लोकेश से खीझते हुए कहा था कि - एक काम कर, तू नस काट ले फिर वो मान जाएगी। आज उसी सलाह के बदौलत शहर के इकलौते अस्पताल का एक बेड भरा पड़ा था। हर " ये इश्क़ नहीं आसान " की तरह ये कहानी भी वैसी ही थी। लोकेश, कक्षा नौ का वो शर्मीला- पढ़ाकू छात्र जो नवम्बर से पढ़ाकू कम, प्यार में पागल ज़्यादा था। स्कूल का ये हेड ब्वॉय भले ही पढ़ाई में मशहूर हो पर वो इश्क़ करे और किसी को खबर ना हो, इतना भी शांत नहीं था वो। उसका इस तरह से बहकना सोलह आना लाज़िमी था क्यूं कि बगल के शहर से आयी नई स्टूडेंट शैलजा थी ही कुछ ऐसी। या फिर प्यार का पहला कदम ऐसा ही होता है शायद। यूं कहो, चलती - फिरती गोरी - चिट्टी मॉडल हो कोई। एक महीने के अंदर पूरे स्कूल में लोकेश - शैलज