लाल इश्क़!

"तुम खून दिखा पानी कर दे रहे हो मुझे। Don't blackmail me."


 दो वाक्य का ये जवाब अभी - अभी ट्रिंग करके लोकेश के  WHATSAPP INBOX  में पहुंच चुका था। मोबाईल नंबर किसका था वो तो पता नहीं पर उसमें आनेवाला वो जवाब किसका था, वो मालूम था उसे।
मोबाईल फोन अभी भी उसके जिगरी दोस्त रवि के हाथों में था जिसने कल शाम परेशान होकर लोकेश से खीझते हुए कहा था कि - एक काम कर, तू नस काट ले फिर वो मान जाएगी। आज उसी सलाह के बदौलत शहर के इकलौते अस्पताल का एक बेड भरा पड़ा था।

हर " ये इश्क़ नहीं आसान " की तरह ये कहानी भी वैसी ही थी।

लोकेश, कक्षा नौ का वो शर्मीला- पढ़ाकू छात्र जो नवम्बर से पढ़ाकू कम, प्यार में पागल ज़्यादा था। स्कूल का ये हेड ब्वॉय भले ही पढ़ाई में मशहूर हो पर वो इश्क़ करे और किसी को खबर ना हो, इतना भी शांत नहीं था वो।

उसका इस तरह से बहकना सोलह आना लाज़िमी था क्यूं कि बगल के शहर से आयी नई स्टूडेंट शैलजा थी ही कुछ ऐसी। या फिर प्यार का पहला कदम ऐसा ही होता है शायद। यूं कहो, चलती - फिरती गोरी - चिट्टी मॉडल हो कोई।

एक महीने के अंदर पूरे स्कूल में लोकेश - शैलजा का संयुक्त नामकरण चरम सीमा पर था। इसके बावजूद शैलजा को उसे साफ हिदायत दे दी थी कि उसे प्यार - व्यार में नहीं पड़ना। शैलजा की ओर से "ना" होना लोकेश को हज़म नहीं हो पा रहा था। सच कहो, "ना" सुनना ही खफा कर रहा था उसे।
पर लोकेश के पास अभी भी रवि रूपी मुरारी साथ के बेंच पे बैठ  शैलजा को फांसने का प्लान बुन रहा था।


घरवालों और रिश्तेदारों का जमावड़ा जैसे ही हॉस्पिटल से बाहर निकला, लोकेश और रवि घर को रवाना हो चुके थे। दो दिनों के बाद जब लोकेश स्कूल पहुंचा, उसके नस काटने का किस्सा बच्चे - बच्चे को पता था। प्रार्थना खत्म होने तक क्लास का हर छात्र उसके कलाई को घूर चुका था लेकिन लोकेश को दुविधा बस इस बात से थी कि वो शैलजा से नज़र मिला पाएगा भी या नहीं!

कुछ देर बाद जब उसकी नज़र शैलजा से मिली, शैलजा की डबडबाती आंखों में उसे उस इंसान का डर दिखा जैसे किसी निर्दोष के सिर पर कत्ल का इल्ज़ाम लगा हो। लेकिन रवि ने उसे तुरंत एहसास दिलाया कि वो तुम्हारे प्यार में रो रही है ना कि दया भाव में।

स्पोर्ट्स पीरियड में शैलजा ने लोकेश को बाकि लड़के - लड़कियों से दूर मिलने का इशारा किया। दस मिनट बाद प्यार में डूबा वो  पढ़ाकू छात्र चेहरा लटकाए उसके सामने खड़ा था। दोनों चुप। बस चेहरे पर किसी के द्वारा देखे जाने का डर था दोनों की आंखों में।

" तुम चाहते क्या हो?" शैलजा ने कड़क आवाज़ में पूछा।
"कुछ नहीं," लोकेश ने सर हिलाकर कहा।
" तो फिर ये नाटक क्यों, वो रवि तुम्हें पागल बनाता जा रहा है और तुम बन भी रहे हो। तुम समझदार स्टूडेंट .........."
"Please love me," लोकेश ने हिम्मत जुटाते हुए उसकी बात काट दी। उसका वो "प्लीज़ लव मी" वाला जवाब बिल्कुल वैसा लग रहा था जैसे किसी ने भीख मांगा हो कोई।


शैलजा ने अचानक से जोर का चांटा उसके गाल पर जड़ दिया। शायद छोटे शहरों में लड़कियों का ये जवाब " ड्राफ्ट" की तरह सेफ्टी- बॉक्स में सेव होता है। और उसका ये थप्पड़ शायद ग़लत भी नहीं था। उस थप्पड़ की सबसे अच्छी बात ये ठहरी कि हेडब्वॉय के गाल को लाल होते किसी ने नहीं देखा।

बाकी के पच्चीस मिनट जैसे - तैसे बीते और सभी छात्र ग्राउंड से वापिस क्लास में ही पाए गए। लोकेश ने थप्पड़ को छोड़ सारी बातें जस- तस रवि को बता दी पर इसके पहले वो फिर से कोई ज़हरीला सलाह देता, शैलजा ने एक कागज़ का टुकड़ा लोकेश की ओर फेंक दिया।

शैलजा ने जैसे ही कागज़ का टुकड़ा लोकेश की ओर फेंका, उसने उस टुकड़े को अपने जूते से दबा लिया।
ये अनर्थ होता देख शैलजा के चेहरे का हाव - भाव सिर्फ़ यही कहना चाह रहा था कि ये पढ़ाकू कैसे हो सकता है। काग़ज़ को पैर से छूने वाला पढ़ाकू कैसे हो सकता है? लोकेश ने उस आधे पन्ने पर लिखी स्याही को प्रेम - पत्र समझ उसे झट से पढ़ डाला।

उसने लिखा था - " थप्पड़ के लिए सो सॉरी लेकिन प्लीज़ मुझसे ज़बरदस्ती मत करो ना। सब कहते हैं कि तुम ' सबसे' समझदार स्टूडेंट हो। तुम ही सोचो कि नस काटने की धमकी देकर कल को कोई भी मुझसे कुछ भी करने को कहेगा तो मैं क्या करूंगी? मुझे मत डराओ ना, प्लीज़।"

लोकेश पर अब थप्पड़ का असर बेहद ही कम हो चुका था लेकिन इन "थप्पड़, सॉरी, प्लीज़, धमकी" जैसे साधारण शब्दों ने उसके सर को इतना भारी बना दिया मानो किसी ने सीता - स्वयंवर का धनुष रख दिया हो उसके सर पे।


रवि नामक पेन - किलर ने पिछले बेंच से फिर से दस्तक देते हुए कहा, " क्या लिखा उसने लव लेटर में?"
"बस ऐसे ही," लोकेश ने जवाब दिया।
"कूल, टेंशन मत ले" रवि ने गहरी सांस लेते फ़िर से अपने बेंच पे बैठते हुए कहा।
अगले पीरियड में जब लोकेश और रवि वाशरूम की ओर गए तो शैलजा उसे घूर- घूर कर देख रही थी। शायद लोकेश का उतरा हुआ चेहरा धीरे - धीरे कठोर दिल में मकान बनाने की पहली इकाई पर खरा उतर रहा था। शैलजा को भी ये पता नहीं चल पा रहा था कि अब ये क्यों हो रहा है क्योंकि लोकेश का नस काटने की हरकत ने उसके बदन में सिर्फ़ और सिर्फ़ डर का मकान बनाया था। और फिर, डर और प्यार का अंतर तो सब को मालूम होता है।

वाशरूम में पहुंचते ही लोकेश फफक कर रो पड़ा और उसने टाई निकाल कर नीचे ज़मीन पर फेंक दिया। दरवाज़े पर कागज़ के एक टुकड़े को टिकाकर अब लोकेश ने कुछ लिखना शुरू किया और रवि ने जैसे ही उसे देखा, उसने फिर से वैसा ही सवाल किया, " तू भी लव लेटर लिख रहा है ना?"

लोकेश ने जैसे - तैसे उस पत्र को पूरा कर शैलजा को देने का सोचा ही था कि रवि ने फिर से मना कर दिया। उसने कहा कि लड़की को उतना ही तवज्जो दे जितनी उसकी काबिलियत हो। तेरा नस काटना ही काफी बड़ी बात है भाई। अब प्लीज़ शांत बैठ।


लोकेश ने उसे भरोसा दिलाया कि वो शैलजा की तरफ़ देखेगा भी नहीं और उसने वो लेटर मोड़कर अपने जेब में रख दिया। जब दोनों क्लास में पहुंचे, दोनों ने शैलजा की तरफ ना देखने के फैसले को बरकरार रखा और वापिस से दोस्तों में मशगूल हो गए।

छुट्टी हुई और सब स्टूडेंट्स घर जाने लगे तभी लोकेश के एक दोस्त ने पीछे से उसे आवाज़ लगाया। पास आने पर उसने कहा कि - अब तू भी क्या भाव खा रहा है रे, जब वो बात करना चाह रही है तो कर ले। लोकेश को उसकी बात का भरोसा नहीं था इसलिए ख़ुद को आश्वस्त करने के लिए उसने बस नंबर 22 के पास जाना सही समझा। पिछले कुछ महीनों से बस का वो नंबर उसकी दिमाग में पूरी तरह छप चुका था। ऐसा होता भी क्यूं ना, शैलजा इसी बस से तो घर वापस जाती जो थी।

अगले कुछ मिनट फिल्मी खोजबीन में बीते और आखिर में दोनों की आंखों ने एक दूसरे को ढूंढ ही लिया। शैलजा बस के पिछले हिस्से में खिड़की के पास बैठी थी और वो शायद इस उम्मीद में थी कि लोकेश आए, उसे ढूंढ ले, बस में साथ बैठ फिर से कुछ बात करे और सुलझा ले सबकुछ। ये वक़्त बिल्कुल वैसा ही था जैसा किसी प्रेम - संबंध की पहली नोक - झोंक में होता है और दोनों पक्ष की कोशिश होती है कि किसी तरह ये लड़ाई खत्म हो।


इसी बीच बस आगे चल पड़ी और दोनों को लगा कि उनकी ये सलीम - अनारकली की प्रेम कहानी शुरू होने के पहले ही ख़त्म हो गई। अकबर बेशक ड्राईवर के भेस में था। अब लोकेश बस की ओर उस खिड़की पर नज़र गड़ाए तेज़ रफ्तार के साथ पीछे पीछे चल रहा था और शैलजा भी बस की खिड़की से बाहर झांक रही थी। बस रफ्तार पकड़ने को थी तभी यकायक रुक पड़ी। हां, ये प्रेम देखकर बस को रुकना ही पड़ा। हां, अकबर को मजबूरन ब्रेक लगाना ही पड़ा। ये प्रेम था ही कुछ ऐसा। बस को रुकना ही पड़ा।

ख़ैर, ऐसा तो कुछ नहीं था। हुआ ये कि हिंदी के टीचर गुप्ता सर के बस पर चढ़ने से पहले ही बस चल पड़ी थी इसीलिए बस को रोकना पड़ा।
बस रुकी लेकिन जब तक गुप्ता सर बस में चढ़ते और बस खुलती, लोकेश ने जेब में पड़ा हुआ लेटर शैलजा की तरफ़ उछाल दिया। शैलजा ने भरे भीड़ में खिड़की से हाथ निकाल उस कागज़ को अपने हाथ में ले लिया। बस में बैठे सारे स्टूडेंट्स चोरी - छिपे शैलजा को घूर रहे थे। छोटे शहरों में रिश्ते ऐसे ही तो उछलते हैं बस इसबार मर्ज़ी दोनों पक्षों की थी।


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